
अजीत मिश्रा (खोजी)
।।जनपद अंबेडकर नगर में पुलिसिया तांडव जारी, सरकारी कर्मचारी भी नहीं सुरक्षित।।
अंबेडकर नगर, 2 जून 2025— जनपद अंबेडकर नगर में पुलिस के रवैये को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी अथवा अधिकारी किसी पुलिसकर्मी या अन्य के विरुद्ध शिकायत करता है, तो न केवल उसकी सुनवाई नहीं होती, बल्कि उल्टा उसका उत्पीड़न शुरू कर दिया जाता है। हालात ऐसे बना दिए जाते हैं कि पीड़ित अधिकारी को जनपद छोड़कर स्थानांतरण कराना पड़ता है।
इसकी पुष्टि दो मामलों से होती है:
पहला मामला — एस०एन० इंटर कॉलेज इन्दईपुर के पूर्व प्रधानाचार्य शिवकुमार मिश्र का है। उन्होंने 27 अप्रैल 2024 को जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश पर थानाध्यक्ष आलापुर को एक तहरीर दी थी। लेकिन तहरीर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। शिवकुमार मिश्र लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। वेतन रुक जाने की स्थिति में उन्होंने थानेदार से कम से कम तहरीर की रिसीविंग देने का अनुरोध किया, ताकि वे उसे जिला विद्यालय निरीक्षक को प्रस्तुत कर सकें। लेकिन थानेदार ने उन्हें फटकारते हुए भगा दिया और कहा, “थाने में कहीं रिसीविंग दी जाती है?” अंततः लगातार मानसिक और प्रशासनिक प्रताड़ना से तंग आकर उन्होंने जून 2024 में अंबेडकर नगर से अयोध्या स्थानांतरण करा लिया।
दूसरा मामला — नगर पंचायत जहांगीरगंज के अधिशासी अधिकारी विनय कुमार द्विवेदी का है। उन्होंने पुलिस कप्तान को शिकायत दी कि थानाध्यक्ष जहांगीरगंज ने उनसे ₹50,000 की रिश्वत ली है। जांच के आदेश पर दो अपर पुलिस अधीक्षक लगाए गए, लेकिन जांच का उद्देश्य आरोपी को दंडित करने के बजाय शिकायतकर्ता को दबाव में लाकर तहरीर वापस लेने के लिए मजबूर करना बन गया। उत्पीड़न की पराकाष्ठा यह रही कि विनय कुमार द्विवेदी को भी जनपद अयोध्या स्थानांतरित होना पड़ा।
जब इन मामलों के संबंध में पुलिस से पूछताछ की गई तो जवाब मिला, “वे अधिकारी अब यहां नहीं हैं, और कहते हैं हमारे पास कोई साक्ष्य नहीं है।” सवाल यह उठता है कि क्या कोई सरकारी कर्मचारी स्थानांतरण के समय अपने कार्यालय के दस्तावेज अपने साथ ले जाता है? नहीं। सभी दस्तावेज संबंधित कार्यालय में ही रहते हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन अधिकारियों को जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया गया है, वे ही अपने अधिकारों और न्याय की मांग करने पर पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।और यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं, बल्कि दर्जनों ऐसे उदाहरण मौजूद हैं,जहाँ आरोपियों से साठगांठ कर पुलिस ने तहरीर देने वालों को ही दोषी बनाना शुरू कर दिया।
जनता अब कप्तान साहब से यह अपेक्षा रखती है कि वह पुलिस की करस्तानी पर भी अपनी ईमानदारी और निष्पक्षता का प्रमाण दें।